July 03, 2016

Features of Bias in British Officers Writings



मैँने Internet का प्रयोग 1999 मेँ किया | लगभग 2003 के आसपास मुझे Gutenberg Project देखने का अवसर मिला | मेरे लिए यह अति रौचक सम्भावना थी कि मैँ एक पूरी किताब अपने computer पर उतार सकता हूँ | परन्तु इतने समय में इन सब information के बावजूद भी कोई उपयोगी बात सामने नहीं आई | तब तक 'Discovery , Accessibility and impact work' के लिए Printed Books का ही रास्ता था | 

2005 में Google ने Google Print को स्थापित किया | वहां से 'Full View' से 'PDF Format' में पूरी किताब उतारने में सफल रहा | इस से पहले कि मैं कोई paradigm develop कर पाता, Google Print के विरुद्ध Publishers संगठीत हो गये | इस से Google Print का अस्तित्व खतरे  में आ गया ।  इस ने मुझे लालच में डाल दिया | मैंने ताबड़तोड़ किताबें उतारनी शुरू कर दीं | 

19वीं शताब्दी की बौद्धिक गतिविधयां मुझे बहुत आकर्षित करतीं हैं | मैँ British Colonial Period के सम्बन्ध में पढ़ता रहता हुँ | इस समय से जुड़ी घटनायों एंव व्यक्तियों के नाम मेरी Search के Phrases बने | इन का प्रयोग करते हुए मैंने लगभग 300 के करीब किताबें Download कर ली थीं । इस मध्य Google Print अब Google Books के रूप में बदल गया था । मेरे Computer पर कुछ ऐसे Titles आ चुके थे जो कि 1750 से 1870 के काल से सम्बद्ध रखते थे । कुछ ही किताबें पढ़ने पर मुझे British Officers की लेखनियों से ऐसी बातें पता चलीं जिन की चर्चा Modern India की इतिहास में बहुत कम की जातीं हैं । मेरे लिए वह सब Discovery थीं । 

मैँ अपनी Discoveries को अपनी Achievement समझता हुआ University Professors से बात करने लगा । मेरा मुख्य उद्देश्य Phd करना था । (वह अभी तक पूरा नहीं हुआ । ) मैंने जिन से भी बात की, लगभग सभी ने ऐसा भाव प्रदर्शित किया जो कुछ भी Internet से प्राप्त हो सकता है वह Research के लिए कभी भी पूरा नहीं पड सकता है। पर मेरी जानकारी ( Discovery ) कुछ अलग थी। उनका दूसरा तर्क था कि British Officers की Writings हमेशा Biased रहीँ है और वह इतिहास के लिए स्थापित Source कभी नहीं हो सकते । 

अतः British Officers की writings biased हैं - यह Proposition सामने आई । 

वह सब पुस्तकें मेरे पास मेरे Computer पर हैं । इन्हें मैँ पढता रहता हूँ । मैंने मेरे अध्यन से अपनी Observations लीं हैं जिसे Research Methodology में Empirical Observation कहा जाता है । यह कुछ इस प्रकार हैं । 

(1)  लगभग सभी ब्रिटिश अधिकारियो के print London में छपे । कुछ किताबें New York से छपी है । पर एक किताब 1820 की कलकत्ता में छपी हुई है। एक Text Book जो कि एक भारतीय की लिखी हुई है वह Madras से छपी है । एक गुप्त टाइटल, "Political Agitators  of India, A Secret Report, 1910 में Shimla Press से छपी है। 

(2) London से छपने वाली किताबें किसी न किसी समकालीन जीवत राजदरबारी  को अर्पित है । 

(3) विभिन्न Prefaces से पता चलता है की मुख्य लेख भारत में ही रहते लिखा गया । जब लेखक किसी कारण लंदन पहुंचा तभी पूरी किताब का प्रकाशन हुआ । 

(4) यह एक रोचक बात लगती है कि कुछ British Officers अपनी किताब के Preface में चर्चा भी करते हैं कि उन की भारत पर लेखन की विरोध्दता इस लिए हो रही है कि उन की किताब छपने पर वह अमीर हो जाएंगे | Orme ने Clive से शिकायत की थी उस को भारत से सम्बन्धित दस्तावेज नहीं दिए जा रहे क्योंके Company समझती है कि वह भारत पर किताब लिख कर धनी हो जाएगा (One can check this fact HERE)। 

(5) कुछ किताबों को Presidencies ने खुद छपवाया था और  उन के खरीदारों की लिस्ट भी दे रखी है। 

(6) यह एक अति महत्वपूर्ण पक्ष है की हर लेखक जानता है कि उस का Target Audience या Reader कौन है। लगभग सभी किताबें बेशक वह East India Company के राज से सम्बंधित हो यां फिर British ताज के  राज से सम्बंधित हों, सभी अपना मुख्य Reader अंग्रेजों को ध्यान में रख कर लिखी गई है। यह किताबें भारतियों/हिन्दुस्तानियों के लिए तो लिखी ही नहीं गई है। बेशक विषयवस्तु भारत था । 

(7) उपर के 6वें बिंदु से जुड़ी बात को फिर से दोहराना जरुरी है। यह किताबें भारत के लिए नहीं थीं । यह किताबें ब्रिटेन के नागरिकों के लिए थीं । यह ब्रिटेन के इतिहास का हिस्सा थीं । अगर Title History of India भी था तो इस का अर्थ यह नहीं के वह भारतीओं को भारत का इतिहास बता रहे थे। वह तो ब्रिटेन के निवासिओं को उस भारत का इतिहास बता रहे थे जहाँ पर उन के देश की एक व्यापारीक \संघठन ने सम्राज्य स्थापित करने का मोर्चा प्राप्त किया था । वह अपने देशवासिओं को बतातें हैं कि उन कि एक trading company कैसे भारत में साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुईं है । 

(8) हर Writer British Public Opinion की तरफ बहुत सजग है । इन किताबों का पाठक Britain का निवासी होगा इस बात का बहुत ध्यान रखा गया है ।

(9) इन लेखों को आप एक group में नहीं रख सकते ।
You can not term it as British Officers Writings. You have freedom to use the terms. However, If you want to be analytical and scientific, then you must read the contents. Well, it is not the topic here.
आप British Officers और संबद्धित लेखकों को ध्यान से पढ़ें तो आप इन writings को पांच यां  छेह categories में बांट सकते हैं ।
a. Court of Directors को खुश यां उन के interest को promote करने वाली यां Board of Control के मुकाबले में Court of Directors के पक्ष को सही ठहराने वाली writings । यहां J. Mills के सिक्स Six Volumes और बाद में H. H. Wilson के साथ Ten Volumes स्पष्ठ रूप में प्रतिनिधित्व करते हें ।

b. Court of Directors के विरोध में लिखी गई किताबें। इस में Clive, Warren Hastings, Outram आदि से सम्बंदित किताबें ।

c.  British Crown के प्रशासन एव ministers के कार्यों की प्रशंसा करने वाले Title.

d.  Christian Missionaries द्वारा लिखीं किताबें ।

e. अमेरिकन, जर्मन, एंव Company एंव Crown के officers के मध्य झगडे निपटने के लेख ।

(10) इस के आलावा समय काल के आधार पर भी दो Categories बनाई जा सकती है ।
a.  1820 से पहले का इतिहास ।
b. 1813 के बाद का इतिहास
उपर की दो Categories में लेखन कला एंव शब्दों के प्रयोग में  भिन्नता साफ स्पष्ट होती हैं । 1820 को मॉडर्न इंडिया के अन्य इतिहासकार पहले से ही एक महत्त्वपूर्ण मीलपत्थर मानते हैं । एसा नहीं है कि मुझसे पहले यह किताबें किसी और ने नहीं पढ़ी ।

(11) यह प्रस्ताव प्रस्ताव 10 की शाखा है - corollary है। 1820  के पहले का लेखन यां सरकारी अफसरों की रिपोर्टों का लेखन कुछ जटिल है। अफसरों को हर एक निर्णेय के लिए minutes लिखने जरूरी होते थे जिसे यां तो उन्हें Secret Committee को भेजना होता था यां फिर Directors को भेजना होता था । वह ',', ';' (Comma and Semi Colon )आदि का इतना प्रयोग करते थे की एक पंकति  में Full Stop एक से दो पेजों में एक बार आता था। Report जमा कराते वक्त केवल इतना कहने के लिए कि यह Report जमा कराई जाती है, उस के लिए एक यां दो पेज भर देते थे । अगर आप अंग्रेजी पढ़ने में अभ्यस्त नहीं हैं और अंग्रेज़ी शब्दावली में हाथ तंग है तो कुछ किताबें आप शुरू तो कर सकते हैं पर पूरी नहीं पढ़ पायेंगे। दूसरा - उस में क्या लिखा है यां लेखक क्या कहना चाहता है आप उस पर स्पष्ठ विचार नहीं बना सकते ।

(12 ) Point 11 को जारी रखते हुए मुझे यह भी बताना है कि 1830 तक तो British Officer Writer मुसलमान बादशाओं एवं दरबार के सम्बन्ध में लिखते वक्त आदरभाव दिखाते हैं परन्तु बाद के लेखों में वह मुसलमान शासकों के लिए आदररहित शब्दावली का प्रयोग करते हैं।

(13) 1820 तक के लेखक Shivaji को ताकत बतातें हैं और Maratha Power शब्द का प्रयोग करते हैं परन्तु Holkar, Scindia, Bhonsle, Berar  राज्य की बात करते हैं तो Maratha उन के लिए Freebooter है ।

(14) एक मराठा और दूसरा ब्राह्मिण प्रशासक एवं अधिकारी से इन लेखकों को बहुत चिड़ है । 1857 के बाद ब्राह्मिण और राजपूत Sepoy बहुत बुरे लोग हैं । Sikh और Gorkha उन के लिए Martial Race हैं ।

(15) Clive के साथ तेलगन सिपाही प्रशंसा के काबिल थे पर वही प्रशंसा राजपूत और ब्राह्मिण सिपाही के लिए बड़ जाती है जो की 1857 के बाद बदल जाती है ।

(16) यह लेखक अंग्रेज़ अफसर के लिए Noble Man शब्द जरूर प्रयोग करते हैं । 1820 के बाद के लेखों में मराठा, मुस्लमान, ब्राह्मण और राजपूत के लिए Corrupt, Unreliable, Cheat, Indolent आदि शब्द का प्रयोग जैसे अनिवार्य कर दिया गया था ।

(17) Mir Jafar, Mir Qasim, Suja-ud-Dula, Nizam आदि सब unreliable घोषित किए जाते हैं। सब से ज्यादा चिड़ तो Daulat Rao Scindia और Tipu के साथ है क़्योंकि वह फ्रन्सिसी और डच अफसरों एवं तोपों का प्रयोग करने से नहीं रुकते। परन्तु यह नफरत Maharaja Ranjit Singh के लिए नहीं दिखाई जाती। 1849 के बाद के सिख पारिवारों के लेखों में उतना आदर नहीं है।

(18) इन किताबों में अंग्रेजो ने अंग्रेज़ो की बहुत सी कमजोरियों की चर्चा करी  है जो की Modern India के Text Books में बिलकुल भी चर्चा का विषय नहीं है ।

(19) अंग्रेज़ अपनी सारी गतिविधिओं को Moral, Justice, rules, Humanity आदि शुभ शब्दों से प्रदर्शित करते हैं।

(20) One feature, I must record. When I started to read these books, a feature projected itself repeatedly. I found that if the author was a military officer, he started his book referring to some scientific law as being emphasized by scholars of science of those days. Sometimes, the reference to science did not justify the content of the book or the topic. It seems that there was an effort to demonstrate that the British world was scientific in temperament and attitude and definitely not irrational. Some of the references were from the medical sciences and homeopathy. It was taken as if they were going to suggest or demonstrate some remedy to the disease which was India. Similarly the authors from Civil Administration took references from the philosophy. I do not know if any research was done on this aspect to show that the British policies were begin decided under the influence of changing atmosphere in the field of knowledge. 

उपरोक्त लिखित बातें मेरी Empirical Observations हैं। अभी मैंने Christian लेख पढ़ने हैं। इन में Friends of India, Alexander Duff जैसे Christian Missionaries की writings हैं। इन के बारे में चर्चा वक्त के साथ होगी।

यहाँ कुछ संक्षिप्त बातें कर के प्रस्ताव का अन्त किया जा सकता है। मेरे प्रस्ताव का निष्कर्ष है कि British Writings are biased - यह proposition stand ही नहीं करती। दूसरा - Bias है यां नहीं, यह विषय है ही नहीं

इतिहासकार का काम तथ्यों को निकालना है। वह समकालीन स्त्रोतों को पक्षपाती यां  Biased घोषित करके अपने कार्य को पूरा नहीं करता। अगर स्त्रोत पक्षपाती है तो उस में भी तत्य छुपा होता है जो की आप के प्रश्न का उत्तर होता है। उसी को तो interpret करना है। History is an interpretation. इतिहासकार का क्या काम है ? उस के लिए तो Bias अवलोकन का विषय है।

इस से आगे - ऐसा लगता है कि इन किताबों को पढ़ कर काफी कुछ वैसा ही लेकर भारत का आधुनिक इतिहास का पाठयक्रम बनाया गया है। और इस पर इन्ह Bias कहना ?? अगर हम उन्ह ध्यान से पढें तो शायद आज की बहुत सारी प्रशासनिक दुविद्धायों का निपटारा कर सकते हैं और कुछ समाधान भी मिलें।

मेरी बात पुरी हुई पर इसी पर अधारित कुछ और चर्चा जरूरी है।

अब तक मैंने जो पढ़ा, उस से मुझे लगता है कि अंग्रेज़ कभी भी राज करने में interested था ही नहीं। वह तो हमेशा ही व्यपार ही करता रहा।बड़ा अजीब सा लगता है कि Company Profit की बात करना बन्द कर के Revenue में interested हो जाती है| Britain जो कि अपने को Law को follow करने वाला कहता है वहां की courts में न तो कोई case डालता है, ना ही Parliament में debate (Burke's Debate on ruining the economy of India by the company was from a different angle.) दिखाई देती है। दूसरी तरफ राष्ट्रवादी इतिहासकार यही बताने पर जोर देते हैं कि अंग्रेजी राज कितना अन्यायी रहा। कैसे अन्यायी रहा इसे कहने में ज्यादा सफल नहीं दिखते। (Remember the comment of Prime Minister Manmohan Singh in British Parliament in 2008.) परन्तु यह तो कहीं चर्चा की ही नहीं गई कि वह जो भारत में करते रहे वह करने में सफल क्यों होते रहे। वह यह तो बताना चाहते ही नहीं कि भारतवासी कहां-कहां विफल रहे। अंग्रेज़ भारत से चले गए यह शायद एक इतिहासिक प्रक्रिया का ही रूप था। अगर हम उन प्रश्नों का उत्तर लें जिनेह पूछने से हम बच रहें हैं तो शायद का इतिहास सही प्रयोग होगा (Soon I am going to bring a post on this issue. It is ready)।

अगर अंग्रेज़ भारत में राज्य स्थापित करने में सफल हुए तो असल में वह मुस्लमान प्रशासकों की असफलता थी। मुस्लिम शासकों ने अपनी राजनैतिक शतरंज के लिए फ्रांसीसों एव अंग्रेज़ो से साठगांठ की और वह उन पर भारी पड गई। यह एक सच है। यरोपीय घटनाओं के कारण अंग्रेज़ भारत में सफल रहे। मूल बात यह है कि मुस्लमान शासकों ने एक राजनीतिक चाल चली और वह उन पर भारी पड़ी।

इसे ऐसे समझा जा सकता है| दौलत ख़ान लोधी बाबर को लेकर आया, लोधियों ने राज खो दिया| उसी तरह जब मुग़लों एंव मुसलमानो ने अंग्रेजों एंव फ्रांसिओ का सहयोग लिया तो उन्होंने अपना राज खोह दिया | निष्कर्ष यह कि किसी राष्ट्र को अगर अपना राज्य बनाये रखना है तो राष्ट्रीय बल अपना ही होना चाहिए, चाहे वह सैनिक बल हो या आर्थिक बल








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